अलेप्पी के पथिरामन्नल द्वीप पर अवश्य जाना चाहिये जो कि उम्मीद से कहीं ज्यादा मजा देता है। प्रवासी पक्षियों की कई प्रजातियों के लिये जाना जाने वाला पथिरामन्नल कई दुर्लभ किस्म के पक्षियों का घर है जिन्हें आप शायद दोबारा न देख पायें। आपकी यात्रा का यह भाग केरल के अनुभव को और भी बढ़ायेगा। वेम्बनाड झील से घिरा यह द्वीप अलेप्पी का एक शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है। अपने शानदार अनुभवों की चकाचौंध में आप ‘केरल के चावल के कटोरे’ की यात्रा करना न भूलें। देवताओं की इस भूमि के बेहतर अनुभव के लिये हरे-भरे खेतों तथा लहलहाते धान की खेती को देखने का समय अवश्य निकाले जिससे आपकी छुट्टियाँ बेहतर हो सकें।
विश्व के इस भाग में कदम रखते ही आप प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों के स्पर्श का अनुभव करेंगें। यदि आप इस एहसास को बढ़ाने के लिये मन्दिरों मे जाना चाहें तो अलेप्पी से आप निराश नहीं होंगें। शहर में अम्बालापुझा श्रीकृष्ण मन्दिर, मुल्लक्कल राजेश्वरी मन्दिर, चेट्टीकुलंगरा भगवती मन्दिर, मन्नारासला श्री नागराज मन्दिर जैसे कई मन्दिर और एडाथुआ चर्च, सेन्ट एन्ड्रियू चर्च, सेन्ट सेबेस्टियन चर्च, चम्पाकुलम चर्च जैसे कई चर्च हैं।
ऐसा माना जाता है कि दक्षिण भारत में ईसाई धर्म को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भ्रमण पर निकले सेन्ट थॉमस अलेप्पी भी आये थे। केरल में बौद्ध धर्म के आगमन के अवशेषों का सरंक्षण भी सराहनीय है। बौद्धकाल से ही केरल में इस धर्म का प्रभाव फैलाना शुरू हो गया था। इसके गौरवशाली अतीत के ज्यादा अवशेष नहीं बचे हैं किन्तु अलेप्पी शहर में संरक्षित करूमडी कुट्टन नामक बुद्ध की मूर्ति में इस बात की झलक देखी जा सकती है।
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