अम्बाजी प्राचीन भारत का सबसे पुराना और पवित्र तीर्थ स्थान है। ये शक्ति की देवी सती को समर्पित बावन शक्तिपीठों में से एक है। गुजरात और राजस्थान की सीमा पर बनासकांठा जिले की दांता तालुका में स्थित गब्बर पहाड़ियों के ऊपर अम्बाजी माता स्थापित हैं। अम्बाजी में दुनियाभर से पर्यटक आकर्षित होकर आते हैं, खासतौर से भाद्रपद पूर्णिमा और दिवाली पर। यह स्थान अरावली पहाड़ियों के घने जंगलों से घिरा है। यह स्थान पर्यटकों के लिये प्रकृतिक सुन्दरता और आध्यात्म का संगम है।
धार्मिक महत्व:
अम्बाजी मन्दिर को भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में गिना जाता है। एक मान्यता के अनुसार देवी सती का हृदय गब्बर पहाड़ी के ऊपर गिरा था। अरासुरी अम्बाजी के पवित्र मन्दिर में, जैसे कि यह अरासुर पर्वत पर स्थित है, पावन देवी की कोई मूर्ति नहीं है। श्री वीसा यन्त्र की ही मुख्य मूर्ति के रूप में पूजा की जाती है। यन्त्र को नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता। इस श्री वीसा यन्त्र की पूजा करने के लिये आँखों पर पट्टी बाँधनी पड़ती है। भाद्रपद महीने की पूर्णिमा को एक मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें जुलाई के महीने में माँ अम्बे की आराधना के लिये लोग देश भर से यहाँ आते हैं। दीवाली के दौरान भी अम्बाजी मन्दिर को प्रकाश से सजाया जाता है। महाराष्ट्र में भी अम्बाजी का उल्लेख है। एक कहानी के अनुसार अपने निर्वासन के दौरान पाण्डव अम्बा जी की पूजा करते थे। अम्बाजी गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित काडियाद्र से 73 किमी, माउन्ट आबू से 45 किमी और पालनपुर से 72 किमी की दूरी पर स्थित है।
अम्बाजी कैसे पहुँचें
अम्बाजी तक वायुमार्ग द्वारा पहुँचना कठिन है क्योंकि निकटतम हवाईअड्डा 180 किमी की दूरी पर स्थित है। हलाँकि रेल तथा सड़क मार्ग के साधनों द्वारा यहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता है।
इसलिए है प्रसिद्ध:
तीर्थयात्रा, अम्बाजी मंदिर , गब्बर हिल्स, कोटेश्वर मंदिर
सबसे अच्छा मौसम:
अक्टूबर – अप्रैल
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