औरंगाबाद पर्यटन प्राकृतिक रूप से जीवंत दृश्यों से धन्य है, जैसे पुन पुन नदी जो आड़ी है। यह चल्हो और द्वारपाल नाम की पहाड़ियों से घिरी है। ये प्राकृतिक परिदृश्य स्फटिक, गोमेद और गार्नेट जैसे कई बहुमूल्य पत्थरों के स्रोत रहे हैं। औरंगाबाद पर्यटन स्मारकों, मंदिरों और मस्जिदों सहित पर्यटकों के लिए बेहतरीन स्थल प्रदान करता है। परिवहन के पर्याप्त साधन पर्यटकों की यात्रा को सुविधाजनक बनाने हैं और उसी की वजह से इस शहर में पर्यटन उद्योग में बढ़ौत्तरी हुई है। पर्यटकों की संख्या हर साल बढ़ रही है। औरंगाबाद का सांस्कृतिक इतिहास मगध के चारों ओर घूमता है, जो भारत के प्रारंभिक इतिहास का तीन चौथाई भाग है। राजा अशोक और चंद्रगुप्त मौर्य जैसे कई महान शासकों ने इस जगह पर राज किया है।
मगधी और हिंदी यहाँ सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा है। औरंगाबाद 1972 में गया से अपने विभाजन के बाद एक स्वतंत्र जिला बना था। यह जगह महान सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है। यहां की मिट्टी धान, गेहूं और गन्ना की खेती के लिए जिसे उपयुक्त है। सिंचाई योजना ने इस क्षेत्र को कृषि के लिए सबसे उपजाऊ और उपयुक्त बना दिया है. च्यावान और भ्रिगू जैसे कई संतों ने अपने दिन यहां बिताये, क्योंकि प्राकृतिक सौंदर्य ने उन्हें हमेशा से ध्यान एवं प्रार्थना के लिये उपचुक्त वातावरण दिया।
प्रतिष्ठित मुस्लिम संतों की शृंखला से कुछ नाम हैं शाह सदरुद्दीन, सैयद मोहम्मद अल्कादारी बगदादी, शाह जलालुद्दीन कबीर पानीपति और मोहम्मद सईद स्यालकोटि हैं, जिन्होंने इस स्थान को अपने ज्ञान से समृद्ध किया। औरंगाबाद पर्यटन और इसके शहर के जीवन के मुकुट में एक और गहना दुमुहानी मेला है। यह मेला ओबरा में आयोजित किया जाता है, जिसमें पशुओं की खरीद-फरोख्त होती है। ओबरा में कालीन बुनाई उद्योग खिल हुआ है। यह पुनपुन नदी के तट पर स्थित है, स्थान जो हिंदुओं के लिए एक पवित्र स्थल माना जाता है।
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