वेदों और रामायण में भी मिलता है संगम नगरी इलाहाबाद का वर्णन

उत्तरप्रदेश का सबसे बड़ा शहर इलाहाबाद कई मामलों में बेहद महत्वपूर्ण शहर है। यह न सिर्फ हिन्दुओं का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, बल्कि आज के भारत को बनाने में भी इसकी अहम भूमिका रही है। पहले प्रयाग के नाम से प्रसिद्ध इलाहाबाद का वर्णन वेदों के साथ-साथ रामायण और महाभारत में भी मिलता है।

इलाहाबाद का इतिहास

1575 में मुगल बादशाह अकबर ने इस शहर का नाम इलाहाबास रखा था, जो बाद में इलाहाबाद के नाम से जाना जाने लगा। दरअसल अकबर ने उत्तर भारत में जलमार्ग के रूप में इलाहाबाद के महत्व को पहचान लिया था और उन्होंने पवित्र संगम के किनारे पर एक खूबसूरत किले का निर्माण भी करवाया। सदियों बाद ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई में इलाहाबाद ने अहम योगदान दिया। इलाहाबाद ही वह जगह है जहां 1885 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना की गई थी और 1920 में महात्मा गांधी ने अहिंसा आंदोलन की शुरुआत भी यहीं से की थी। ब्रिटिश शासनकाल में इलाहाबाद पश्चिमोत्तर प्रांत का मुख्यालय हुआ करता था। इस युग की निशानियां आज भी इलाहाबाद के म्योर कॉलेज ओर ऑल सेंट कैथिडरल में देखी जा सकती है।

इलाहाबाद का कुंभ मेला

महाकुंभ का आयोजन हर 12वें साल किया जाता है। महाकुंभ के अलावा हर छह साल पर अर्धकुंभ का आयोजन किया जाता है। हर साल जनवरी में संगम क्षेत्र में माघ मेला का आयोजन किया जाता है। इस दौरान कुल्फी जमा देने वाली ठंड में भी लोग अपने पापों को धोने के लिए माँ गंगा में डुबकी लगाते हैं। कुंभ के दौरान इलाहाबाद में पर्यटकों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हो जाती है। इलाहाबाद ने हर दौर में भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संपदा को सींचा है। महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू और मुरली मनोहर जोशी जैसे कई विद्वान इलाहाबाद से ही निकले हैं। नि:संदेह इलाहाबाद भ्रमण के दौरान धर्म, संस्कृति और इतिहास की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

इसलिए है प्रसिद्ध: संगम, कुंभ मेला, महा कुंभ, इलाहाबाद मिठाई, माघ मेला

सबसे अच्छा मौसम: नवम्बर – फरवरी

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